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बाज़ारे हुस्न में दिल का ये कारोबार अच्छा था


बाज़ारे हुस्न   में दिल का ये    कारोबार अच्छा था

Pratyush Pathak "Shams"
一一一一一一一一一一

मेरा चेहरा तो बिकता था मगर किरदार अच्छा था

बाज़ारे हुस्न   में दिल का ये    कारोबार अच्छा था


वो दफ़्तर का मुलाज़िम बन गया अब घर नहीं आता

ये दौलत की   बुलन्दी से    तो वो बेकार    अच्छा था


जो मेरे साथ चलता था मगर अब गुम हैं अरसों से

ना जाने अब कहाँ   होगा मेरा एक यार अच्छा था


मैं तुझको पा जो लेता गर तो फिर खोने का डर रहता

तभी क़ुर्बत    नहीं माँगी          मगर दीदार अच्छा था


वफ़ा की चाह में लोगों को   होते ख़ाक देखा जब

समझ आया मुझे तब की तिरा इनकार अच्छा था


शराफत ओड़ ली उसने     फ़क़त   अब चोट खाता हैं

जो उसकी कैफ़ियत हैं अब वो तो अय्यार   अच्छा था


वो  मेरे साथ रहकर भी  मोहब्बत कर नहीं पाया

बुरी उसकी रिफ़ाक़त थी मगर इज़हार अच्छा था

©Pratyush Pathak "Shams"