Search

बाज़ारे हुस्न में दिल का ये कारोबार अच्छा था


बाज़ारे हुस्न   में दिल का ये    कारोबार अच्छा था

Pratyush Pathak "Shams"
一一一一一一一一一一

मेरा चेहरा तो बिकता था मगर किरदार अच्छा था

बाज़ारे हुस्न   में दिल का ये    कारोबार अच्छा था


वो दफ़्तर का मुलाज़िम बन गया अब घर नहीं आता

ये दौलत की   बुलन्दी से    तो वो बेकार    अच्छा था


जो मेरे साथ चलता था मगर अब गुम हैं अरसों से

ना जाने अब कहाँ   होगा मेरा एक यार अच्छा था


मैं तुझको पा जो लेता गर तो फिर खोने का डर रहता

तभी क़ुर्बत    नहीं माँगी          मगर दीदार अच्छा था


वफ़ा की चाह में लोगों को   होते ख़ाक देखा जब

समझ आया मुझे तब की तिरा इनकार अच्छा था


शराफत ओड़ ली उसने     फ़क़त   अब चोट खाता हैं

जो उसकी कैफ़ियत हैं अब वो तो अय्यार   अच्छा था


वो  मेरे साथ रहकर भी  मोहब्बत कर नहीं पाया

बुरी उसकी रिफ़ाक़त थी मगर इज़हार अच्छा था

©Pratyush Pathak "Shams"




No comments:

Post a Comment

Please don't drop any link

आदम ऐसे कहाँ होते
आदम ऐसे कहाँ होते
आदम ऐसे कहाँ होते कंक्रीट के निर्जीव वन मेंजानवर ठहरे भवन मेंप्राणवायु लुप्त होतीऔर सभी अस्तित्व खोतेआदम ऐसे कहाँ होतेदृश्य दो में देख लो तुमएक अलग संसार हैवन में जीवन फल रहाबस वृक्ष ही आधार हैबीनते सूखी लकड़ियांऔर फलों को तोड़करजी रहे हैं सब खुशी सेमुख्य धारा छोड़करसब सरलता से चले ऐसी यहां जीवन कहाँआते तब कुछ दूरदर्शीमुख्य धारा से वहां अंदर अपने कपट पालेमन में उनके ज़हर बोतेआदम ऐसे
ऑनलइन कवि सम्मेलन
ऑनलइन कवि सम्मेलन
ऑनलइन कवि सम्मेलन  कोरोना जैसे वैश्विक महामारी में बाहर निकलना मना  है और हमे अपने घरों पर रहने की आवस्यकता है। ऐसी विकट परिस्थिती  में भी हमे अपने हौसलों को बुलंद रखने की जरुरत है।  ऐसे ही सभी के हौसलों को बढ़ाये रखने के लिए और हमारे दर्सकों के मनोरंजन के लिए हमने कवि सम्मलेन का आयोजन किया। 31 अगस्त को टेप योर थॉट्स के तरफ से ऑनलाइन कवी सम्मलेन का आयोजन