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आदम ऐसे कहाँ होते

आदम ऐसे कहाँ होते


 कंक्रीट के निर्जीव वन में

जानवर ठहरे भवन में

प्राणवायु लुप्त होती

और सभी अस्तित्व खोते

आदम ऐसे कहाँ होते


दृश्य दो में देख लो तुम

एक अलग संसार है

वन में जीवन फल रहा

बस वृक्ष ही आधार है


बीनते सूखी लकड़ियां

और फलों को तोड़कर

जी रहे हैं सब खुशी से

मुख्य धारा छोड़कर


सब सरलता से चले 

ऐसी यहां जीवन कहाँ

आते तब कुछ दूरदर्शी

मुख्य धारा से वहां 


अंदर अपने कपट पाले

मन में उनके ज़हर बोते

आदम ऐसे कहाँ होते


वहां पर धरती के नीचे

स्वर्ण का भंडार निकला

मुख्य धारा के मनुष्यों

के हृदय से ज्वार निकला


हर घड़ी कोशिश यही की

गांव विस्थापित करो 

भले कोई मर भी जाये

अपना तुम बस हित करो


कुचल डाला हरित वन को 

रह गए सब जीव सोते

आदम ऐसे कहाँ होते


कालचक्र ये जो है

कमाल अमरोही हुआ

गांव के मुखिया का छोरा

भोला विद्रोही हुआ है


एकजुट कर लोग को फिर

उस विनाश के बाद में 

चल दिया वन को बचाने

भोला दहके आग में


गांव के सारे बचे लोगों 

में दिल मे आग थी

भोला अकेला नहीं था

गजरानी उनके साथ थी


भीषण हुआ था द्वंद वो

लकड़ियों और कंक्रीट में

पर नहीं था शेष कुछ भी

हार में और जीत में


युद्ध मे कंक्रीट फिर 

लकड़ियों पर भारी पड़ा

और बेचारे भोला के 

हाथों पे फिर आरी पड़ा


था रुआंसा वो खड़ा

मच गया हाहाकार था

अगले क्षण कानो में उसके

गजरानी का हुंकार था


कुछ नहीं हां कुछ नहीं

हां कुछ नहीं अब सब गया

और वो कपटी गजा के

पैरों तले था दब गया


वन था उनका बच गया 

ये देवी की सौगात थी

लकड़ी जीती कंक्रीट से 

ये एकता की बात थी


कटा हाथ थामे हाथ में

वो खड़ा सबके साथ में

उस आग में रोते रोते

कहे

आदम ऐसे कहाँ होते

आदम ऐसे कहाँ होते।

ⒸAyush Raj Tiwari "Ayushman"

✴✴✴✴✴



समय हूँ मैं!

समय हूँ मैं!



Tape Your Thoughts
शाम की हलकी बरसात में,
मैं बैठा बहार खिड़की से गुजरते हुए समय को देख लिया,
तो रोक लिया। 

हड़बड़ी में हूँ, भाव खाते हुए 
मुझे हालात का मारा हुआ, बताते हुए 
एक कदम आगे जाने को बढ़ाये 
वो कह रहा था मैं ठहरता कहा हूँ।  

मुझे फर्क नहीं पड़ता किसी से की कोई भूखा है, दुखी है, रोगी है 
आशावान है की सुख रास्ते में है, सुखी है 

मैं कभी नहीं रुका,
किसी के लिए भी - ना बालपन, ना बचपन, ना लड़कपन 
किसी को भी टिकने ना दिया - ना नादानी, ना जवानी, ना मर्दानगी
सुस्त और आलसी हो जाता हूँ, देखकर 
लोगों को - शोकलिप्त, मरणासन पर पड़े, मन के गढ़े,

मैं ठहर कर भी क्या देखूं 
ये नफरतों का फैलाओ, प्रेम में दूरियों का बहाओ, 
चिंतित मन, ख़ुदकुशी की ओर जाता अकेलापन। 

मुझे ना रोको गुजर जाने दो, एक वक़्त का साथी समझ लो, बस 
गुजर रहा हूँ गुजर जाऊंगा अच्छे समय में अच्छा, बुरे समय में बुरा हूँ 
ख़ुशी में हंसाया होकर बेशर्म, दुःख में आँखों को कर गया नम

सबके लिए मैं यादगार बन जाऊं तो अच्छा है,
समय हूँ मैं, बिना ठहरे गुजर जाऊं तो अच्छा है। 

✤ ✤ ✤

यह कविता उमेश ठाकुर जी (mr.umeshthakur89@gmail.com) द्वारा लिखी गयी है। कविता आपको कैसी लगी हमे निचे कमेंट कर के बताये। 

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समय - हिंदी कविता



समय 


अधम पुरुष व अधर्मी राज़ा !
राम का अभिनय करनेवाला !
अखंड ज्योति को नाकारा है !
सच में नृप तम को धारा है !

चाल तुम्हारा "तेज़" रवि सा !शून्य क्षितिज़ में मेघ सुधा सा!
समय,शहद व समय है करवा!
देख रहा ज़ग समय का ज़लवा,! 

ज़ग में हमें, सब सताया है! समय क्लेश का विष लाया है!
समय को ज़ीवन दान दूंगा!
हर्षित हो विष-पान करूंगा!

राज़ा हो या रंक फ़कीरा !
चुभता नेज़ा(भाला)होता पीड़ा!
समय,सुहाग-सिन्दूर मिटाया! अद्भुत है प्रभु तेरी माया  !


✤ ✤ ✤






यह कविता अभिमन्यु प्रजापति जी (abhimanyukumar1629@gmail.com) के द्वारा लिखी गयी है।  अभिमन्यु जी बिहार के लखीसराय के रहने वाले है।  अगर आपको यह कविता पसंद आयी तो हमे निचे कमेंट कर के जरूर बताएं।  




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ग़लतफ़हमी

ग़लतफ़हमी 

ग़लतफ़हमी
तेरी खुशियां ही नही तेरे गम को भी अपना माना था ,
सिर्फ छाओं नही धूप में भी साथ निभाएंगे मन में ठाना था,
औकात नही थी फिर भी तेरी हंसी की किमत चुकता रहा,
मैं मुहब्बत की हर कसम हद से आगे बढ़ निभाता रहा ,
  
सोचा नही था एक दिन ऐसा भी आएगा
मेरे इश्क़ को वक़्त का दरिया बहा ले जाएगा
वो अपना कहने वाला गैरों सा पेस आएगा,
मेरी मुहब्बत और जज्बातों को भी तौला जाएगा

समय के भवर में फंस के सब कुछ गावा बैठा
एक रिश्ता निभाया तो दूसरे से हाथ छुड़ा बैठा
जो कभी सोचा नही वैसे इल्ज़ाम लगाए हैं
मेरे आशिक़ी ने कैसे कैसे दिन दिखाए हैं

जो दूर रहकर रिश्ते निभाने की बात करते थे 
बस बात न होने से मायूश हो गए
हम जरा मजबूर क्या हुए
हमपे इल्ज़ाम बेवफाई के मजबूत हो गए

और कुछ तो नही है कहने को बस इतना कह के जाना है 
भले तुम कुछ भी सोचो दिल आज भी तेरा दिवाना है
रिस्ते निभा नही पाए तो क्या भूलें हम अपनी बात नही हैं
तेरे बिन जो कट जाता है आज भी उसे हम मानते रात नही है।

~~ अनुराग कुमार पांडेय 



इस कविता की वीडियो देखे : 



अनुराग कुमार पांडेय की अगली कविता तू बहुत पछतायेगा को भी पढ़े।  

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https://youtu.be/insEwr3P_y0  

तू बहुत पछतायेगा

तू बहुत पछतायेगा 

यूं तो नारी समाज का एक अभिन्न अंग है, किसी ने नारी की व्याख्या पुरुष के पूरक की तरह की है तो किसी ने स्त्री की महिमा करते हुए उसे अन्नपूर्णा, सरस्वती , लक्ष्मी तो किसी ने दुर्गा माना है , संसार के सृजन से लेकर नास तक औरत प्रासंगिक है फिर औरत की ये दसा क्यों, जहां एक तरफ हम नारी की तुलना पूज्य देवीयों से करते हैं वहीं न जाने कितने ही प्रकार से हम उनका अनादर भी करते हैं, आखिर ऐसा दोहरा चरित्र क्यों है हमारा नारी को लेकर , जब स्त्री के बिना संसार चल ही नही सकता तो फिर इस संसार को हमने क्यों पुरुष प्रधान बना रखा है, वो स्त्री जो अपने सपनो की , इक्छाओं की आहूति दे देती है ताकि उसके परिवार को दो जून की रोटी समय से मिले उसके इस परिश्रम को बलिदान को हम उसकी मजबूरी समझ लेते हैं. आज न हम इनकी इज़्ज़त करते हैं न अपने बच्चों को इनकी इज़्ज़त करना सिखाते हैं, और बस यहीं हम अवसर देते हैं एक ऐसी पिढी को पनपने की जो आगे चलकर नारी का सम्मान तो दूर उसके साथ सही भी न कर सके , देश स्वतंत्र हुआ पर हमारी मानसिकता नही , हमारी जिंदगी तो बदल दी हमने पर कभी ये कोसिस नही की की जिन्होने हमे जिंदगी दी उनके लिए भी कुछ काम हो उनका भी थोड़ा सम्मान हो , आज बहुत मंथन करने के बाद ये लगा कि आत्म सुधार ही समाज सुधार का पहला पायदान होता है


ये जमात-ए-मर्द अपनी कमी कुछ इस तरह छुपाते हैं,

खुद को औरतों की इज़्ज़त का ठेकेदार बताते हैं,

लूट लेते हैं सरेबाज़ार अस्मत किसी बेटी की,

और अपनी बेटियों को पर्दे में छुपाते हैं,

अरे कायरों उपरवाले के इंसाफ से कब तक बच पाओगे,
एक दिन तुम भी किसी बेटी के बाप कहलाओगे,
कल यही दिन तुम्हारे भी पास आएगा,
वक़्त की चक्की में तब तू भी पिसा जाएगा,
मत भूल की उसके घर है देर पर अंधेर नही,
बच जाए उसकी लाठी से तू इतना बड़ा तो शेर नहीं,
क्या होगा जब कल तेरी बेटी की चीखें कान में तेरे आएंगी,
जब घर आकर वो तुझे अपना हाल 
सुनाएगी,
याद रख उस वक़्त तू कितना पछतायेगा,
वो रोना दूसरे की बेटियों का जब याद तुझे आएगा,
सोच ले फिर कैसे तू अपनी बेटी से नज़रें मिलाएगा,
जब तुझे उसमे नज़र किसी और का चेहरा आएगा। 
~~~~~ अनुराग कुमार पाण्डेय 

कृप्या वीडियो देखे इनकी :



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