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ग़लतफ़हमी

ग़लतफ़हमी 

ग़लतफ़हमी
तेरी खुशियां ही नही तेरे गम को भी अपना माना था ,
सिर्फ छाओं नही धूप में भी साथ निभाएंगे मन में ठाना था,
औकात नही थी फिर भी तेरी हंसी की किमत चुकता रहा,
मैं मुहब्बत की हर कसम हद से आगे बढ़ निभाता रहा ,
  
सोचा नही था एक दिन ऐसा भी आएगा
मेरे इश्क़ को वक़्त का दरिया बहा ले जाएगा
वो अपना कहने वाला गैरों सा पेस आएगा,
मेरी मुहब्बत और जज्बातों को भी तौला जाएगा

समय के भवर में फंस के सब कुछ गावा बैठा
एक रिश्ता निभाया तो दूसरे से हाथ छुड़ा बैठा
जो कभी सोचा नही वैसे इल्ज़ाम लगाए हैं
मेरे आशिक़ी ने कैसे कैसे दिन दिखाए हैं

जो दूर रहकर रिश्ते निभाने की बात करते थे 
बस बात न होने से मायूश हो गए
हम जरा मजबूर क्या हुए
हमपे इल्ज़ाम बेवफाई के मजबूत हो गए

और कुछ तो नही है कहने को बस इतना कह के जाना है 
भले तुम कुछ भी सोचो दिल आज भी तेरा दिवाना है
रिस्ते निभा नही पाए तो क्या भूलें हम अपनी बात नही हैं
तेरे बिन जो कट जाता है आज भी उसे हम मानते रात नही है।

~~ अनुराग कुमार पांडेय 



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